माँ सती के 51 शक्तिपीठ में से एक हिमाचल का प्रसिद्ध Jawala Devi Mandir काफी चमत्कारी मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर माता सती के जीभ गिरी थी। यहाँ माता ज्वाला के रुप में विराजमान है और साथ में भगवान शिव उन्मत भैरव के रुप में स्थित है। इस मंदिर में माता की प्रतिमा की नहीं बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहे 9 ज्वाला की पूजा की जाती है।
आज तक इस ज्वाला देवी मंदिर का रहस्य कोई भी भू-वैज्ञानिक नहीं पता लगा पाये है कि यह ज्वाला कहाँ से एवं कैसे निकल रही है। इसके लिए जमीन के नीचे काफी अंदर तक खुदाई भी की गयी है।
तो आईए इस पोस्ट के माध्यम से जानते है इस ज्वाला के अद्भुत रहस्य, धार्मिक एवं वैज्ञानिक मान्यताए के बारे में
Jawala Devi Mandir की 9 ज्योति
मां ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल एवं बाती के 9 ज्योति जल रही है। जो माता के 9 स्वरुप का प्रतीक के रुप में विराजमान है। मंदिर में एक सबसे बड़ी ज्योति जल रही है वह ज्वाला माता के रुप में है एवं
8 अन्य ज्योति के रुप में माँ अन्नपूर्णा, माँ विन्ध्यवासिनी, माँ महालक्ष्मी, माँ सरस्वती, माँ चण्डी, माँ अम्बिका, माँ हिंगलाज एवं माँ अंजी देवी विराजमान है।
माँ ज्वाला देवी की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गुरु गोरखनाथ जो माता के परम भक्त थे, उन्हें एक बार भूख लगी तो उन्होने माता से प्रार्थना की आप आग जलाकर पानी गर्म करें मैं भिक्षा माँग कर लाता हूँ,
माता आग जलाकर पानी गर्म की एवं गुरु गोरखनाथ भिक्षा माँगने चले गये, और लौटकर नहीं आये, इसी बीच युग परिवर्तन हुआ, सतयुग के बाद कलयुग आ गया.
तब से यह ज्वाला निरंतर जल रही है एवं ज्वाला के बगल में एक कुण्ड में जल गर्म होकर खौल रहा है, जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनः सतयुग आने पर गुरु गोरखनाथ आयेगें, तबतक यह ज्वाला जलती रहेगी।
माँ ज्वाला देवी मंदिर का निर्माण
माता का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। Jawala Devi का यह मंदिर जोता वाली मंदिर एवं नगरकोट की ज्वाला रानी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में स्थित इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने कराया था।
अकबर और ध्यानु भगत की कथा
मुगल बादशाह अकबर और देवी मां के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी एक कथा के अनुसार माता के भक्त ध्यानु भगत एक बार काफी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहे थे। भक्तों की इस बड़ी संख्या को देखकर अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक (दिल्ली) पर उन्हें रोक लिया और बंदी बनाकर अकबर के दरबार में पेश किया।
बादशाह अकबर ने पूछा, तुम इतने लोगों को साथ लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया, मैं ज्वाला माँ के दर्शन के लिए जा रहा हूं। मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता के भक्त हैं और यात्रा पर जा रहे हैं।
अकबर ने कहा यह ज्वाला माँ कौन है, और वहां जाने से क्या होगा। ध्यानू ने कहा कि ज्वाला माता संसार का पालन करने वाली हैं। उनका प्रताप से उनके स्थान पर बिना तेल-बाती के 9 ज्योति निरन्तर जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष माता रानी के दर्शन को जाते हैं।
इस पर अकबर ने कहा, अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो क्या देवी माता तुम्हारी इज्जत रखेगी। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करवा लेना।
इस प्रकार, घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानू ने बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू की बात मानते हुए उसे आगे की यात्रा की अनुमति दे दी। ध्यानु भक्त श्रद्धालियों के साथ माता के दरबार में पहुंचा। उसने माता से प्रार्थना की, कि हे मातेश्वरी आप सर्वज्ञानी हैं। अकबर मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज को बचाये रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से प्राण देकर जीवित कर देना।
माना जाता है कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने उस घोड़े को फिर से जिंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गये। अकबर ने भी मां के आगे झुकाया सिर- अकबर ने अपनी सेना के साथ मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर पहुंचने पर सेना से मंदिर में ज्योति पर पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी। तब जाकर उसने मां की महिमा का यकीन हुआ।
उसने माता के आगे सिर झुकाया, लेकिन फिर उसने सोने का छत्र से एक ज्योति को ढ़कवा दिया, लेकिन उस ज्योति ने छत्र चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया। कहा जाता है कि वह छत्र गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। जिसे आज भी मंदिर में देखा जा सकता है।